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आज की मुरली (7th जनवरी 2025) में बापदादा ने बहुत ही अनमोल बातें समझाई हैं। हमें इन्हें ध्यान में रखते हुए अपने जीवन को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है। इस मुरली के माध्यम से हमें यह सिखाया गया है कि संगमयुग पर ब्राह्मण बनने का अर्थ क्या है और आत्मा को पवित्र बनाने की आवश्यकता क्यों है। इस ज्ञान को अपने जीवन में उतारने का समय अभी है, क्योंकि यही समय है जब हम नर से नारायण और नर्कवासी से स्वर्गवासी बन सकते हैं।

Aaj Ki Murli 7th January 2025

संगमयुग में ब्राह्मणों की महिमा और उनके ज्ञान की विशेषता

मीठे बच्चों, जब आप अपने आप को संगमयुगी ब्राह्मण समझते हैं, तो सतयुगी झाड़ देखने में आता है और अंतहीन खुशी का अनुभव होता है। इस आत्मा के सफर में बाप, शिक्षक और सतगुरु तीनों ही एक रूप में हैं। संगमयुग का यह समय बहुत मूल्यवान है, क्योंकि यह नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने का समय है। इस लेख में हम ब्राह्मण जीवन के रहस्यों और इस विशेष समय के महत्व को सरल शब्दों में समझेंगे।

ज्ञान के शौकीन बच्चों की निशानी

जो बच्चे ज्ञान के प्रति उत्सुक होते हैं, उनकी पहचान है कि वे सदा ज्ञान की ही चर्चा करेंगे। वे कभी दूसरों की आलोचना या परचिंतन में समय व्यर्थ नहीं करेंगे। जब भी समय मिलेगा, वे आत्मचिंतन और विचार सागर मंथन करेंगे।

आध्यात्मिक ज्ञान का यह गुण उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। वे हर परिस्थिति में बाप की सिखाई हुई बातों को याद रखते हैं और उसी के अनुसार अपना जीवन जीते हैं। उनका ध्यान सदा आत्मा के उत्थान और पवित्रता पर रहता है।

सृष्टि ड्रामा का अद्भुत रहस्य

इस सृष्टि का सबसे बड़ा सत्य यह है कि यहाँ कोई भी चीज़ स्थाई नहीं है। केवल शिवबाबा ही ऐसा तत्व हैं जो सदा कायम रहते हैं। इस पुरानी दुनिया की आत्माओं को नई दुनिया में ले जाने के लिए एक मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। यही कार्य शिवबाबा करते हैं।

ड्रामा का यह राज़ केवल संगमयुगी ब्राह्मण आत्माएं ही समझ सकती हैं। वे जानते हैं कि कैसे शिवबाबा पतितों को पावन बनाकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। यह गहन ज्ञान उनकी बुद्धि में हमेशा चलता रहता है और उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराता है।

संगमयुगी ब्राह्मण का पहचान

ब्राह्मण कुल की पहचान यह है कि वे अपने कुल को कभी नहीं भूलते। संगमयुग पर आने वाले ब्राह्मण जानते हैं कि वे नर से नारायण बनने के सफर पर हैं। उनके जीवन में बाप की सिखाई गई नई-नई बातें रिपीट होती रहती हैं। वे यह भी समझते हैं कि उनका जीवन न केवल उनके लिए बल्कि पूरे विश्व के कल्याण के लिए है।

Official Brahma Kumaris Daily Murli: माया से युद्ध और विजय

यह युद्ध बाहुबल का नहीं, बल्कि माया और आत्मा के बीच है। माया हर संभव प्रयास करती है कि आत्मा को उसकी याद यात्रा से भटका दे। लेकिन ब्राह्मण आत्माएं जानती हैं कि उन्हें इस युद्ध में जीतकर कर्मातीत अवस्था में पहुँचना है।

माया के चक्र से बचने का एक ही उपाय है – शिवबाबा को याद करना। बाप कहते हैं, “मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जाएंगे।” यह स्मृति यात्रा कठिन जरूर है, लेकिन आत्मा को पावन बनाने का यही एकमात्र साधन है।

ज्ञान का चिंतन और उसकी महिमा

संगमयुगी ब्राह्मण आत्माओं के लिए जरूरी है कि वे एकांत में बैठकर ज्ञान का चिंतन करें। हर दिन, हर परिस्थिति में यह समझें कि वे आत्मा हैं और बाप के बच्चे हैं। ज्ञान के शौकीन बच्चे कभी भी परचिंतन या व्यर्थ चिंतन में समय व्यर्थ नहीं करते।

उनकी बुद्धि में सदा यह चलता रहता है कि वे संगमयुग पर हैं, पवित्र बन रहे हैं, और स्वर्ग का वर्सा प्राप्त कर रहे हैं। इस विचार में रहना ही उनके जीवन की सच्ची उपलब्धि है।

ईश्वरीय मिशन का उद्देश्य

ईश्वरीय मिशन का मुख्य उद्देश्य शूद्र से ब्राह्मण और ब्राह्मण से देवता बनाना है। इस मिशन के अंतर्गत हर आत्मा को यह समझाया जाता है कि वे शिवबाबा के बच्चे हैं। उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने विचार, वाणी और कर्म को पवित्र बनाएं।

सच्चे ब्राह्मण वही हैं जो मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्र हैं। उनकी सेवा का उद्देश्य है कि वे दूसरों को भी इस पवित्रता के मार्ग पर ले आएं।

ज्ञान और योगबल का महत्व

बाप ने बताया है कि योगबल से ही आत्मा पवित्र बनती है। इस योगबल का प्रभाव इतना महान है कि यह आत्मा को पतित से पावन बना देता है। शिवबाबा का यह योगबल ही है जो इस पूरे सृष्टि चक्र को संतुलित करता है।

ब्राह्मण आत्माओं को चाहिए कि वे अपने जीवन में योगबल का अभ्यास करें और इसका लाभ दूसरों को भी दें। सेवा का यही तरीका उन्हें ईश्वरीय मिशन का सच्चा सेवाधारी बनाता है।

Aaj Ki Murli: पवित्रता का संकल्प और प्रतिज्ञा

ब्राह्मण आत्माओं को अपने जीवन में पवित्रता का संकल्प लेना चाहिए। बाप कहते हैं, “तुम आत्मा भाई-भाई हो।” इस रिश्ते की सच्चाई को समझते हुए हर ब्राह्मण को अपने विचार और कर्म को पवित्र रखना चाहिए।

यह पवित्रता ही है जो उन्हें स्वर्ग का मालिक बनाती है। बाप के इस वचन पर अमल करना हर ब्राह्मण का कर्तव्य है। जब वे इस पवित्रता में स्थित होते हैं, तो उनका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा बनता है।

आत्मचिंतन और स्वदर्शन चक्र

ब्राह्मण आत्माओं को सदा अपने स्वदर्शन चक्र में रहना चाहिए। यह चक्र उन्हें याद दिलाता है कि वे कहाँ से आए हैं और कहाँ जाना है।

बाप कहते हैं, “अपने चक्र को सदा स्मृति में रखो। इससे माया पर विजय पाना आसान हो जाता है।” आत्मचिंतन के इस अभ्यास से ब्राह्मण आत्माएं अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ती हैं।

सर्विस और सहयोग की महिमा

ब्राह्मण आत्माओं को चाहिए कि वे अपना समय सेवा और सहयोग में लगाएं। यह सेवा न केवल दूसरों को मार्ग दिखाती है, बल्कि स्वयं ब्राह्मण आत्मा को भी मजबूत बनाती है।

बाप कहते हैं, “दूसरों को सहयोग देना अर्थात् अपना जमा करना।” जब ब्राह्मण आत्माएं इस भावना के साथ सेवा करती हैं, तो उनका जीवन सच्चे अर्थों में सार्थक बनता है।

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